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पार्वा कार्यकारिणी के चुनाव - कार्यक्रम घोषित
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Wednesday, December 29, 2010

कचरा संस्कृति

एक महिला परेशान खोई-खोई अपने बरामदे में टहल रही थी. दोपहर का वक़्त था. उनकी पडोसन भी अपने बरामदे में आईं. इन परेशान महिला को देखा तो बोलीं, 'क्या बात है बहन, बड़ी परेशान लग रही हो. सब ठीक तो है न?'
महिला, 'हाँ सब ठीक है, बस कुछ उलझन सी हो रही है'.
पडोसन, कैसी उलझन?'
महिला, 'ऐसा लग रहा है जैसे मैंने कुछ करना था पर किया नहीं और अब याद भी नहीं आ रहा कि क्या करना था.'
पडोसन, 'अरे तो इस में परेशान क्या होना. एक-एक करके गिन लो कि क्या करना था और क्या नहीं किया. सुबह उठने से शुरू करो.
'हाँ यह ठीक है', महिला ने खुश हो कर कहा और मन ही मन गिनना शुरू किया. कुछ ही देर में ख़ुशी से चिल्लाईं, 'याद आ गया. आज मैंने अभी तक पार्क में कचरा नहीं फेंका. बस इसी बात से उलझन हो रही थी.'
पडोसन, 'चलो ठीक हुआ, अब जल्दी से कचरा फेंको पार्क में और इस उलझन से छुटकारा पाओ'.'
महिला ने जोर से आवाज लगाईं, 'अरे बहू जल्दी दे प्लास्टिक में डाल कर कचरा दे, पार्क में फेंकना है.'
'पर सासूजी कचरा तो सारा जमादार ले गया.' बहू अन्दर से चिल्लाई.
'थोडा बचाकर नहीं रख सकती थी मेरे लिए? रोज पार्क में कचरा फेंकती हूँ जानती नहीं क्या?' महिला गुस्से से चिल्लाईं.
बहू बाहर आकर बोली, 'मैंने सोचा आपने फेंक दिया होगा. रोज सुबह आप सबसे पहला काम आप यही तो करती हैं.'
'अरे आज भूल गई', महिला बोली, 'अब जल्दी से कुछ कचरा तैयार करके ले आ. जब तक कचरा पार्क में नहीं फेंकूँगी मेरी उलझन दूर नहीं होगी'.
'अब इतनी जल्दी कचरा कहाँ से पैदा करूँ?, बहू ने कहा.
'हे भगवान्, किस गंवार को हमारे पल्ले बाँध दिया. जरा सा कचरा तक नहीं पैदा कर सकती.' महिला ने परेशानी में अपने माथे पर हाथ मारा.
बहू कुछ नहीं बोली और झल्लाती हुई अन्दर चली गई. मन में सोचा, बाबूजी को क्यों नहीं फेंक देती पार्क में, बेचारों का हर समय कचरा करती रहती है.
इधर महिला और परेशान हो गई. अचानक ही उन्हें एक आईडिया सूझा. उन्होंने अपनी पडोसन से कहा, 'बहन आपके यहाँ थोडा कचरा होगा? मुझे दे दीजिये कल लोटा दूँगी. मेरा आज का काम हो जाएगा.'
'हाँ हाँ बहन ले लीजिये कचरा और लौटाने की कोई जरूरत नहीं. आप अक्सर चाय, चीनी, दूध मांगती रहती हैं. कभी लौटाया है क्या कि अब कचरा लौटाएँगी'. पडोसन मुस्कुराते हुए बोली.
महिला तिलमिलाईं पर हंसते हुए बोली, 'अब जल्दी से मंगवा दो न कचरा.'
पडोसन ने अपनी बहू को आवाज दी, 'अरे बहू थोडा कचरा एक प्लास्टिक में डाल कर ले आ. आंटी को पार्क में फेंकना है.'
बहू कचरा ले कर आई और आंटी को दे दिया. महिला ने कचरे से भरा प्लास्टिक पार्क में फेंक दिया. दूर बैठा एक कुत्ता दौड़ा हुआ आया आया. प्लास्टिक को फाड़ा और कचरे को इधर उधर फैला दिया.
महिला के चेहरे पर प्रसन्नता और शान्ति का भाव था, ऐसा लग रहा था जैसे उन्होंने कोई महान सामजिक और सांस्कृतिक कर्तव्य पूरा किया हो. वह हंसते हुए पड़ोसन से बोली, 'बहन आपका बहुत बहुत धन्यवाद. आपका यह उपकार जिंदगी भर नहीं भूलूंगी.'
पड़ोसन बोली, 'पड़ोसी होते किस लिए हैं?'
जय कचरा संस्कृति.

सरकारी जमीन पर कब्जा करने का आत्मिक सुख

आज सुबह पार्क में सिन्हा साहब बहुत खुश नजर आ रहे थे. मुहाबरे की भाषा में कहें तो, ख़ुशी फूटी पड़ रही थी उनके चेहरे पर. बैसे ध्यान से देखने पर अत्यधिक प्रसन्न सिन्हा साहब के चेहरे पर कुछ परेशानी भी नजर आ रही थी. अत्यधिक प्रसन्नता और कुछ परेशानी का ऐसा अद्भुत संगम मैंने पहले कभी नहीं देखा था. कई लोगों ने पूछा पर उन्होंने अपनी इस प्रसन्नता और परेशानी को किसी के साथ बांटा नहीं था. जब मेरी उत्सुकता मुझे परेशान करने लगी तो मैं भी उनके पास पहुँच गया.
मुझे देखते ही बोले, 'दीवान साहब नहीं आये अभी तक?'
दीवान साहब उनके लंगोटिया यार हैं. तो यह कारण था उनकी परेशानी का. ख़ुशी की बात दीवान साहब को न बता पाने के कारण परेशान थे सिन्हा साहब. खैर यह परेशानी ज्यादा देर नहीं रही. दीवान साहब भी आ गए.
सिन्हा साहब ने अपनी शिकायत दर्ज कराई, 'कहाँ रह गए थे यार? इतनी देर से इंतज़ार कर रहा हूँ.'
'यार कल रात दारू पार्टी ज्यादा देर तक चली. उठने में देर हो गई', सिन्हा साहब ने सफाई दी और पूछा, 'तुम कहाँ रहे कल? पार्टी में नहीं आये'.
'अरे यही तो बताना है तम्हें' सिन्हा साहब ने कहा और दीवान साहब का बाजू पकड़ कर उन्हें झाडियों की तरफ ले गए.
मैं भी खिसका और झाडियों की दूसरी तरफ छिप कर खड़ा हो गया. सिन्हा साहब ने दीवान साहब को जो बताया वह मैं आपको बता रहा हूँ, पर इस शर्त के साथ कि आप किसी और को नहीं बताएँगे.
दीवान साहब, 'हाँ अब बताओ.'
सिन्हा साहब, 'यार तुम तो जानते ही हो कि ईश्वर ने मुझे हर गलत काम करने का आत्मिक सुख दिया, पर सरकारी जमीन पर कब्जा करने के आत्मिक सुख से अभी तक बंचित कर रखा था. कल वह सुख भी प्राप्त हो गया'.
दीवान साहब, 'भई वधाई हो, अब जल्दी से खुलासा कर के बताओ'.
सिन्हा साहब, 'तुम्हे पता ही है कि मैं बेटे की शादी कर रहा हूँ और उस के लिए मकान में कुछ फेर बदल करवा रहा हूँ'.
दीवान साहब, 'हाँ हाँ मालूम है, अब आगे कहो'.
सिन्हा साहब, 'दो दिन से पिछले कमरे में काम चल रहा था कि तुम्हारी भाभी ने एक आइडिया दिया. क्यों न सड़क की तरफ दीवार बढा कर एक अलमारी और एक स्टोर बना लें? इस से कमरे में जगह भी खूब मिल जायेगी और सरकारी जमीन पर कब्जा करने का तुम्हारा सपना भी पूरा हो जाएगा. मेरी तो बांछे खिल गई यार, क्या आइडिया दिया था बीबी ने'.
दीवान साहब, 'वाह क्या बात है. किसी ने सही कहा है कि हर सफल आदमी के पीछे एक औरत होती है'.
सिन्हा साहब, 'हाँ यार, भगवान् ऐसी बीबी किसी दुश्मन को न दे. कल रात जा कर यह महान काम पूरा हुआ. तब से एक गहरे आत्मिक आनंद का अनुभव कर रहा हूँ'.
दीवान साहब, 'लेकिन लोग ऐतराज नहीं करेंगे क्या? सड़क बैसे ही काफी तंग है, अब तो और भी तंग हो जायेगी'.
सिन्हा साहब, 'अरे यार यह बात तो मेरे इस आत्मिक आनंद को दुगना कर रही है. आपके कारण पडोसी परेशान हों, इसी में तो मनुष्य जीवन की सफलता है. एक मीठी गुदगुदी सी महसूस कर रहा हूँ अपने अन्दर. आज जब दिन में सब देखेंगे और जलेंगे तो कितना आनंद मिलेगा हमें'.
दीवान साहब, 'अगर किसी ने शिकायत कर दी तो?'.
सिन्हा साहब, 'अरे वह तो शायद कर भी चुके लोग. पुलिस वाले और नगर निगम वाले आये थे और अपनी भेंट ले कर चले गए. अब माता रानी को भेंट और चढानी है. आखिर उनकी कृपा से ही तो यह सब संभव हुआ है'
दीवान साहब, 'वधाई हो, अब मिठाई कब खिला रहे हो?'.
सिन्हा साहब, 'क्या यार तुम भी, मिठाई नहीं दारू और मुर्गे की बात करो. माता रानी की कृपा हुई है, क्या मिठाई से निपटा दूंगा? फाइव स्टार में पार्टी होगी यार'.
दीवान साहब, 'जय माता रानी की. चलो अब चलते हैं, माँ की कृपा के दर्शन तो कर लें'.

Saturday, December 25, 2010

यह तो हद हो गई गैरजिम्मेदारी की


पिछले एक महीने से यह गड्ढा खुदा हुआ है. इसे पानी की लीकेज को ठीक करने के लिए खोदा गया था. न लीकेज ठीक हुई और न ही गड्ढा भरा गया. पार्वा कार्यकारिणी गैरजिम्मेदार है यह तो सभी जानते हैं पर यह तो हद हो गई है गैरजिम्मेदारी की.

सी-ब्लाक के साथ पार्वा कार्यकारिणी का व्यवहार हमेशा सौतेला रहा है. चाहे वह गेट नंबर २ को खोलने का समय हो, चाहे वह फव्वारे वाले पार्क की देख रेख हो, चाहे थोड़ी सी वारिश होने पर पानी जमा हो जाना हो, चाहे सीवर जाम हो जाना हो, गन्दा और बदबूदार पानी घरों के बाहर बह रहा हो, चाहे कम्युनिटी सेंटर में ऊंची आवाज में कार्यक्रम हो रहा हो, पार्वा कार्यकारिणी को इन सब से कुछ लेना-देना नहीं होता. पार्वा कार्यकारिणी को तकलीफ तब होती है जब ए या बी ब्लाक में कोई तकलीफ हो.

सी ब्लाक से दो प्रतिनिधि पार्वा कार्यकारिणी में हैं, श्री धवन और श्री पालीवाल. यह दोनों महाशय क्या करते रहते हैं? क्या इन्हें कुछ नजर नहीं आता? क्या आज तक इन लोगों ने सी-ब्लाक की किसी समस्या की पार्वा कार्यकारिणी की मीटिंग में उठाया है? आज तक इन्होनें ब्लाक के निवासियों के साथ कोई मीटिंग नहीं की. इनकी कोई जिम्मेदारी है या नहीं? ऐसे गैरजिम्मेदार प्रतिनिधि के होते सी-ब्लाक की किसी समस्या का सुलझना संभव नहीं है. अगर यह लोग काम नहीं कर सकते तब इस्तीफा दें.

कौन भरवाएगा इस गड्ढे को? किस की जिम्मेदारी है यह? कभी भी कोई दुर्घटना हो सकती है.

Sunday, December 5, 2010

भगवती माँ की चौकी






विशाल भगवती जागरण समिति ने कल भगवती माँ की चौकी का आयोजन किया. यह आयोजन प्रगति अपार्टमेंट्स के सेन्ट्रल पार्क में हुआ. सारा प्रगति अपार्टमेंट्स माँ के भजनों की मधुर ध्वनि से गूँज उठा. माँ के दरबार की शोभा देखते ही बनती थी. सब निवासियों ने भक्ति, श्रद्धा और हर्षोल्लास से माँ का कीर्तन किया. आयोजकों ने माँ का भण्डारा भी लगाया था. सब भक्तों ने श्रद्धा और प्रेम से माँ का प्रसाद ग्रहण किया.

पिछले वर्ष के आयोजन से अगर तुलना की जाय तब इस वर्ष पूरा आयोजन अत्यंत सुचारू ढंग से किया गया. इसके लिए सभी आयोजक धन्यवाद और वधाई के पात्र हैं. उनके साथ जो स्व इच्छा से सेवादार काम कर रहे थे वह सब भी धन्यवाद और वधाई के पात्र हैं. युवा वर्ग इस में काफी उत्साह से शामिल हुआ. यह बहुत ही ख़ुशी और संतोष की बात है.

भजन मण्डली की जितनी प्रशंसा की जाय कम है. मधुर स्वरों में गाई गईं भेंटो ने एक अजब ही समाँ बाँध दिया.

मैंने कुछ फोटो खींचे. आप भी देखिये.

नगर कीर्तन







धन-धन श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाशोत्सव पर आयोजित नगर कीर्तन आज सुबह प्रगति अपार्टमेंट्स से होकर निकला. वाहे गुरु जी के कीर्तन से सारा प्रगति अपार्टमेन्ट गूँज गया. निवासियों ने उत्साह और हर्षोल्लास से कीर्तन का स्वागत किया. भक्तों ने असीम श्रद्धा और विश्वास के साथ गुरु का प्रसाद ग्रहण किया. मैंने कुछ फोटो खींचे. आप भी देखिये.


 

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