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Wednesday, December 29, 2010
सरकारी जमीन पर कब्जा करने का आत्मिक सुख
आज सुबह पार्क में सिन्हा साहब बहुत खुश नजर आ रहे थे. मुहाबरे की भाषा में कहें तो, ख़ुशी फूटी पड़ रही थी उनके चेहरे पर. बैसे ध्यान से देखने पर अत्यधिक प्रसन्न सिन्हा साहब के चेहरे पर कुछ परेशानी भी नजर आ रही थी. अत्यधिक प्रसन्नता और कुछ परेशानी का ऐसा अद्भुत संगम मैंने पहले कभी नहीं देखा था. कई लोगों ने पूछा पर उन्होंने अपनी इस प्रसन्नता और परेशानी को किसी के साथ बांटा नहीं था. जब मेरी उत्सुकता मुझे परेशान करने लगी तो मैं भी उनके पास पहुँच गया.
मुझे देखते ही बोले, 'दीवान साहब नहीं आये अभी तक?'
दीवान साहब उनके लंगोटिया यार हैं. तो यह कारण था उनकी परेशानी का. ख़ुशी की बात दीवान साहब को न बता पाने के कारण परेशान थे सिन्हा साहब. खैर यह परेशानी ज्यादा देर नहीं रही. दीवान साहब भी आ गए.
सिन्हा साहब ने अपनी शिकायत दर्ज कराई, 'कहाँ रह गए थे यार? इतनी देर से इंतज़ार कर रहा हूँ.'
'यार कल रात दारू पार्टी ज्यादा देर तक चली. उठने में देर हो गई', सिन्हा साहब ने सफाई दी और पूछा, 'तुम कहाँ रहे कल? पार्टी में नहीं आये'.
'अरे यही तो बताना है तम्हें' सिन्हा साहब ने कहा और दीवान साहब का बाजू पकड़ कर उन्हें झाडियों की तरफ ले गए.
मैं भी खिसका और झाडियों की दूसरी तरफ छिप कर खड़ा हो गया. सिन्हा साहब ने दीवान साहब को जो बताया वह मैं आपको बता रहा हूँ, पर इस शर्त के साथ कि आप किसी और को नहीं बताएँगे.
दीवान साहब, 'हाँ अब बताओ.'
सिन्हा साहब, 'यार तुम तो जानते ही हो कि ईश्वर ने मुझे हर गलत काम करने का आत्मिक सुख दिया, पर सरकारी जमीन पर कब्जा करने के आत्मिक सुख से अभी तक बंचित कर रखा था. कल वह सुख भी प्राप्त हो गया'.
दीवान साहब, 'भई वधाई हो, अब जल्दी से खुलासा कर के बताओ'.
सिन्हा साहब, 'तुम्हे पता ही है कि मैं बेटे की शादी कर रहा हूँ और उस के लिए मकान में कुछ फेर बदल करवा रहा हूँ'.
दीवान साहब, 'हाँ हाँ मालूम है, अब आगे कहो'.
सिन्हा साहब, 'दो दिन से पिछले कमरे में काम चल रहा था कि तुम्हारी भाभी ने एक आइडिया दिया. क्यों न सड़क की तरफ दीवार बढा कर एक अलमारी और एक स्टोर बना लें? इस से कमरे में जगह भी खूब मिल जायेगी और सरकारी जमीन पर कब्जा करने का तुम्हारा सपना भी पूरा हो जाएगा. मेरी तो बांछे खिल गई यार, क्या आइडिया दिया था बीबी ने'.
दीवान साहब, 'वाह क्या बात है. किसी ने सही कहा है कि हर सफल आदमी के पीछे एक औरत होती है'.
सिन्हा साहब, 'हाँ यार, भगवान् ऐसी बीबी किसी दुश्मन को न दे. कल रात जा कर यह महान काम पूरा हुआ. तब से एक गहरे आत्मिक आनंद का अनुभव कर रहा हूँ'.
दीवान साहब, 'लेकिन लोग ऐतराज नहीं करेंगे क्या? सड़क बैसे ही काफी तंग है, अब तो और भी तंग हो जायेगी'.
सिन्हा साहब, 'अरे यार यह बात तो मेरे इस आत्मिक आनंद को दुगना कर रही है. आपके कारण पडोसी परेशान हों, इसी में तो मनुष्य जीवन की सफलता है. एक मीठी गुदगुदी सी महसूस कर रहा हूँ अपने अन्दर. आज जब दिन में सब देखेंगे और जलेंगे तो कितना आनंद मिलेगा हमें'.
दीवान साहब, 'अगर किसी ने शिकायत कर दी तो?'.
सिन्हा साहब, 'अरे वह तो शायद कर भी चुके लोग. पुलिस वाले और नगर निगम वाले आये थे और अपनी भेंट ले कर चले गए. अब माता रानी को भेंट और चढानी है. आखिर उनकी कृपा से ही तो यह सब संभव हुआ है'
दीवान साहब, 'वधाई हो, अब मिठाई कब खिला रहे हो?'.
सिन्हा साहब, 'क्या यार तुम भी, मिठाई नहीं दारू और मुर्गे की बात करो. माता रानी की कृपा हुई है, क्या मिठाई से निपटा दूंगा? फाइव स्टार में पार्टी होगी यार'.
दीवान साहब, 'जय माता रानी की. चलो अब चलते हैं, माँ की कृपा के दर्शन तो कर लें'.
Posted by S. C. Gupta at 10:38 AM
Labels: inconvenince to neighbours, inner satisfaction, land grab, municipal corporation, police, Pragati blog, purpose of life, unauthorized occupation of public land
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