दीवाली मेले के दूसरे दिन का आयोजन भी कोई विशेष उत्साहवर्धक नहीं रहा. बस इतना अंतर था कि ओवरहेड लाईट्स जली हुई थीं. पहले दिन से रौशनी कुछ ज्यादा थी. बच्चो की डांस प्रतियोगता और तम्बोला, बस यही दो कार्यक्रम थे.
मैं जब भी स्टेज की और देखता मुझे लगता कि यह मेला है या कोई सेमिनार? स्टेज पर मेज और कुर्सियां लगी थीं, कुर्सियों पर नेता लोग जमे हुए थे. पार्वा कार्यकारिणी के अधिकाँश सदस्य कल की तरह आज भी गायब थे. प्रधानजी चुप थे, सचिव और एक बीआर बिना रुके बोल रहे थे. बच्चे जमीन पर डांस कर रहे थे. पीछे बैठे दर्शकों को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. अधिकाँश लोगों का ध्यान खाने पर केन्द्रित था. जो अपार्टमेन्ट के बाहर से आये थे, चुनींदा स्टाल्स पर इकट्ठे थे.
कल की तरह जेनरेटर आज भी नहीं चल रहा था. मतलब विजली कहीं और से आ रही थी. मैंने ३१ तारीख की सुबह कुछ फोटो खींची थीं. आप भी देखिये. कानून तोडना क्या जरूरी था? पार्वा कार्यकारिणी ने ऐसा क्यों किया मैं यह नहीं समझ पाया. कितना पैसा बचाया उन्होंने यह कर के? प्रगति अपार्टमेंट्स के निवासियों को शर्मिंदा किया. कल को अगर कोई समस्या खड़ी हो जाती है तो प्रगति अपार्टमेंट्स का नाम बदनाम होगा. शिक्षित लोगों से यह आशा नहीं की जाती.
यह कार्यक्रम पार्वा कार्यकारिणी द्वारा आयोजित था. इस में कानून का उल्लंघन हुआ. पार्वा कार्यकारिणी निवासियों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों को भी इजाजत देती है, बदले में कुछ शुल्क लेती है. इन कार्यक्रमों में अगर ध्वनि निरोधक कानून का उल्लंघन होता है या विजली की चोरी होती है, तब उसकी जिम्मेदारी भी पार्वा कार्यकारिणी पर ही आती है. पार्वा अध्यक्ष , सचिव और अन्य पदाधिकारियों/सदस्यों को इस बारे में सावधान रहना चाहिए.
चलिए वर्ष २०१० का दीवाली मेला संपन्न हुआ. आशा है वर्ष २०११ का दीवाली मेला एक नए रूप में खूब धूमधाम से आयोजित किया जाएगा.
मेला ख़तम, पैसा हजम.
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