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Sunday, March 20, 2011

होलिका दहन



विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी प्रगति अपार्टमेंट्स में होलिका दहन हुआ.

होली की पूर्व संध्या में होलिका दहन किया जाता है. इसके पीछे एक प्राचीन कथा है कि दीति के पुत्र हिरण्यकश्यपु भगवान विष्णु से घोर शत्रुता रखता था . इसने अपनी शक्ति के घमंड में आकर स्वयं को ईश्वर कहना शुरू कर दिया और घोषणा कर दी कि राज्य में केवल उसी की पूजा की जाएगी. इसने अपने राज्य में यज्ञ और आहुति बंद करवा दिया और भगवान के भक्तों को सताना शुरू कर दिया. हिरण्यकश्यपु का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. पिता के लाख कहने के बावजूद प्रह्लाद विष्णु की भक्ति करता रहा.

असुराधिपति हिरण्यकश्यपु ने अपने पुत्र को मारने की भी कई बार कोशिश की परंतु भगवान स्वयं उसकी रक्षा करते रहे और उसका बाल भी बांका नहीं हुआ. असुर राजा की बहन होलिका को भगवान शंकर से ऐसा चादर मिला था जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी. होलिका उस चादर को ओढकर प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गयी. दैवयोग से वह चादर उड़कर प्रह्लाद के Šৠपर आ गया जिससे प्रह्लाद की जान बच गयी और होलिका जल गयी. होलिका दहन के दिन होली जलाकर होलिका नामक दुर्भावना का अंत और भगवान द्वारा भक्त की रक्षा का जश्न मनाया जाता है.

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