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Monday, August 9, 2010

पंद्रह अगस्त - क्या भूल गए क्या याद रहा

पिछले वर्ष मैंने पंद्रह अगस्त पर अपनी एक रचना अपने ब्लॉग काव्य कुञ्ज पर प्रकाशित की थी. आज वह रचना इस ब्लॉग पर प्रकाशित कर रहा हूँ.

"मैं बच्चा था एक वर्ष का,
जब पंद्रह अगस्त आया था,
आधी रात सूरज निकला था,
माँ ने मुझको बतलाया था,
आजादी के रंग में रंग कर,
नया तिरंगा फहराया था,
कई सदियों के बाद आज फिर,
भारत माता मुस्काई थी,
कितने बच्चों की कुरबानी
देकर यह शुभ घडी आई थी.

रंग-बिरंगे वस्त्र पहन कर,
हम सब विद्यालय जाते थे,
झंडा फहरा, राष्ट्र गान गा,
सब मिल कर लड्डू खाते थे,
दिन भर हा-हा-हू-हू करते,
रंग-बिरंगी पतंग उडाते,
मौज मनाते, ख़ुशी मनाते,
थक जाते, जल्दी सो जाते.

अब सोते हैं सुबह देर तक,
छुट्टी का आनंद लूटते,
लाल किले की प्राचीरों से,
कुछ न कुछ हर साल भूलते,
बना दिया बाज़ार राष्ट्र को,
भूल गए अपना इतिहास,
बने नकलची बन्दर हम सब,
अपना नहीं बचा कुछ पास.

राष्ट्र मंच पर कहाँ खड़े हैं,
नायक हैं या खलनायक है,
हैं सपूत भारत माता के,
या उसके दुःख का कारण हैं?
छह दशकों के दीर्घ सफ़र में,
कितने कष्ट दिए हैं माँ को,
माँ की आँखें फिर गीली हैं,
जागो अरे अभागों जागो."

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